Wednesday, September 14, 2011

जीवन का पहिया..


जीवन का पहिया
घिसा-घिसा सा ह
और..
रीता -रीता सा

चलो न ----
रीते-रीते में रंग भरते हैं
घिसे-घिसे में उमंग

रंगों को तुम भरना
क्यूंकि..
'तुम' हो 'सप्तरंग'

हाँ--
उमंग मै भरुंगी...
क्यूंकि..उमंगें 'कुलांचें'
भर रही हिरनी सी
--मेरे वजूद में...Vasu

यादे शेष है


बीत गया बसंत
तेरे आगमन की ...
यादे शेष है
पतझर के मौसम में
ये कैसा श्रृंगार हुआ था ?
बसंत का आगमन तो दूर
मेरे मन में
तेरा आगमन
बार -बार हुआ था
नैस्त्रशियम और पैंजी के
फूलों से ज्यादे
सुन्दर, खुबसूरत
आम के बौरों से भी
ज्यादा महकदार -
ऐ मेरे यार,हवा जैसे
दोशीजा की ...
कलियों के आंचल
और लहरों के मिजाज
से छेड़खानी करती ,
मेरे मन में तेरी आहट
एक नयी अनुभूति-
देती हुयी...
तुम सुबह से भी
ज्यादा ..मासूम
प्रभाती गाकर,
फूलों को
जगा देने वाले
देवदूत मेरे
सूर्योदय के गुलाबी
पंखुडियां बिखेरने
वाले....
सुनहरे पराग की
एक बौछार
सुबह के ताजे
फूलों सी बिछ रही
मेरे तन ,मन में -
अब भी शेष ...Vasu

बोनसई


 

तुम जानते हो बहुत बड़ी हूँ

पर तुम्हारे
संकुचित विचारों के कारण
हूँ यहाँ...गमले में सजी


छोड़ के देखो मुझे
खुली जमीन में
नजरें उठानी पडें
टोपी सम्भालते हुए
और वही तुम नहीं चाहते

तुम्हारी आशंकाएं
निराधार भी नहीं हैं

क्या बनेगा
तुम्हारी शान
और अहंकार का
जो गमले से निकल
पा लीं मैंने जमीन
और छू लिया आसमान...!!



बोनसाई पौधे को अदबदा कर छोटा बनाने की अस्वाभाविक प्रक्रिया का उत्पाद है .पौधे के कुदरती विकास के साथ खिलवाड़ है .हमारे बनाए समाज में लडकियां औरतें भी बोनसाई बना रखी जातीं हैं ...!!

Tuesday, September 13, 2011

यादों की कैद में



कितनी जहरीली
कितनी तड़प ,
कितनी पीड़ा
सांसो की अकुलाहट ..
बढती जाती है
उसमें फँसी इस 'मै'
का क्या करूँ ?
शरीर आत्मा को ..
छोड़ती तो शव बन जाती ,
उसकी तो ' गती ' है
कुछ लकड़ियाँ ...
उस पर शव बना शरीर
अग्नि को अर्पण करते लोग
यादों को कहाँ अर्पण करूँ...
तर्पण करूँ ?
कैसे इसका श्राद्ध करूँ ...
कैसे इसका श्राद्ध करूँ
कैसे इसका श्राद्ध करूँ ... Vasu

Monday, September 12, 2011

मोहताज़ नहीं मै.



ये भी
ठीक किया
जो करते रहे
पहले भी..

ये तुम्हारा
प्यार था
और वो
मेरा प्यार
जो अमिट है..

तुम्हे देखते
रहने भर की
मोहताज़ नहीं मै..
ये वो प्यार है जो...
बसा तो 'बसा'...

निकल नहीं पाया
तन से,मन से
और आत्मा से.... !!

Sunday, September 11, 2011

तुम 'ही' मै हूँ


मेरी चांदनी ...
तुम..हो ही ऐसी ..
तुझे याद क्यूँ न करूँ...
मेरी गुलाब तो
तुम ही हो
बागों का गुलाब
क्यूँ याद रखूं,
वो सावन की
पहली बारिश ..
जब हम साथ थे...
भींगे..
वो लम्हा
भूलता ही नहीं
फिर याद क्या रखूं,
वो भींगे हुए
गेसुओं को देख
जब मै भ्रम में था
कि
घटा है या गेसू.....
और लिपट गया था
तुझमे..
वो भुला कब कि...
कुछ याद करूँ,
हर पल नुरानी बन
समायी हो...
मेरे जेहनो जद्द में
सुबह कि रंगत को
याद क्यूँ करूँ...
सच तो ये है प्रिये...
तुझे भूल पाता नहीं...
फिर क्या याद करूँ ...
क्या याद करू......Vasu

Friday, September 9, 2011

प्रिये '...



तुम्हारी बिंदिया ने
सूरज को ढँक दिया है

तुम्हारे कंगन में मैंने
चाँद को जड़ दिया है

रात अकेली सी
जब तुम्हारे खुशबुओ से
महक उठी तो ...
अमावसी रात भी
तुम्हारे पाजेब की
झंकार से ...
पूर्णिमा में बदल गयी

उस झंकार से
आज भी मेरा घर
रौशन होता है

तुम तो यहीं हो
हर दम मेरे पास
मेरे ख्वाब तो
परिपूर्ण है प्रिये

मै 'तुम' संग न
होके भी ....
तुम संग हूँ ...!!

अपना मिलना


अपना मिलना
इत्तेफाक न समझो...

सदियाँ गुजर जाती है
लम्हों को सजाने में,और 
एक क्षण लगता है
उसे बिखर जाने में...

जितना समेट सकते
समेट लो.....
बीते हुए पल
वापस नहीं आयेंगे...
आने वाला पल
यूँ न गवाएंगे... !!

Thursday, September 8, 2011

'तुम' बन जाऊं..


बेचैन 'रूह' सी 
मडराती हुयी मै...
भटकती-भटकती
तुझमे समा
'तुम' बन जाऊं.. !!

"छल"



भावुक'
निश्छलता का प्रतीक ..
पवित्रता भी ..

पर है 'सच यही की'
हर पल 'हम' छले जाते हैं
केवल अपनों के हाथों
'गैरो के' नहीं 


बनना होगा हमें
'अचल' ,'अजर' धरा ,
अविरल 'बहने' वाली 'दरिया'


मै..' नहीं बन सकती अब भावुक...
क्यूंकि छली गयी बार बार ..

अपनों से...!!