गुलाब की पंखुडियां बिखेरते
सुनहरे पराग की
सुनहरे पराग की
बौछार
लिए तुम
सुबह
से भी मासूम
प्रभाती
गाते
फूलों
को जगाते
मेरे
देवदूत
लहरों
सी छेड़ती
मेरे
मन में तेरी आहटें
कैसे
बाँधा था
तुमने
मुझे शब्दों से..
जैसे
तितली को
रंगों
से हीं पकड़ लिया
तेरे
शब्दों के बादलों में
मैं
चाँद सी गुम
धरती
सी निकलती
बहकती
रही
सूरज
की तलाश में ...!