Wednesday, November 27, 2013

चांदनी रात में


भीने-भीने उजाले में
गीत गाना
गुनगुनाना

चाँद को छोड़
तारों संग इठलाना

ओसकणों से
देंह सुन्न ,बेसुध हो जाना..

कितना सुखद लगता है ... !!

Sunday, November 17, 2013

सुनो

 
ढूंढते थक जाओगे
वहां भी, जहाँ तीन नदियाँ मिलती है

उन किनारों पर
जहाँ राख, कठकोयले और
अधजली लकड़ियाँ बिखरी होगीं
नही मिलुंगी मैं

दिखूंगी तुम्हे
तुम्हारी आँखों में
 जिन्हें सबसे छुपाते फिरोगे

दिखूंगी उस आलमारी में
जहाँ से हर सुबह प्रेस किये कपडे निकालते हो

दिखूंगी वहां..
तुम्हारे बिन पालिश के जूतों में

और वहां भी... रसोई में
जहाँ कुछ खाने को नहीं बना होगा

घर के
इधर-उधर फैले सामान में भी
अक्सर... मैं ही दिखूंगी तुम्हें..!!

Thursday, November 14, 2013

गाँवों में

सुबह-शाम
वहां धुआँ उठता है

पेंड़ो के झुरमुटों से ,उठता
छल्ले से उभरते

आह !

कितना सुन्दर लगता है
छल्लो के पार झाँकना ...!!