Monday, July 16, 2012

सुन...,
मन ले चल ,
उस ओर जहाँ
पीपल के पत्ते
आपस में बात करते हैं ...
जहाँ...
टेबल की जरुरत नहीं होती ...
शब्द ....
मन की कागज़ पर
टंकित होते जाते हैं धडाधड...
जहाँ तुमसे कहने को
कुछ... लिखना ना पड़े ...
और तुम बिन कहे
सब समझ जाओ
हाँ एक जगह है....
मेरे दिल का सुनसान कोना...
जहाँ तुम अमृतत्व की
बरसात किये थे उस दिन...
वो गर्माहट नहीं आती तुममे अब ...
पर ...
वो बाज़ारवाद की
चपेट में कभी नहीं आयेगा ...
चल मन वहीँ चल...!!

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर ,प्यारी रचना..
    दिल को स्पर्श करते भाव...
    :-)

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    1. हौसला बढ़ाने के लिए दिल से आभार संजय जी..!!

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