सन्नाटे तोड़ती
पटरियाँ चीरती
धरड़-धरड़ रेल
पा लेती है मंजिलें
पर यह दिल
दिनरात धडकता
बावरा आवारा दिल
कितना ही चाहे
तुम तक पहुंच पाना
वहीं का वहीं रहता है
जहाँ से चलता है
क्या तुलना ले बैठे हो ?
कहाँ
लोहे और तेल और
समाज की धरड़-धरड़
कहाँ
दिल की छुई-मुई
हारमोनियम धडकनें
फिर भी दिल, दिल है
अपना मालिक खुद है
आज नहीं तो कल
इस जन्म नहीं, तो अगले में
पा ही लेगा मंजिलें ... !!©
पटरियाँ चीरती
धरड़-धरड़ रेल
पा लेती है मंजिलें
पर यह दिल
दिनरात धडकता
बावरा आवारा दिल
कितना ही चाहे
तुम तक पहुंच पाना
वहीं का वहीं रहता है
जहाँ से चलता है
क्या तुलना ले बैठे हो ?
कहाँ
लोहे और तेल और
समाज की धरड़-धरड़
कहाँ
दिल की छुई-मुई
हारमोनियम धडकनें
फिर भी दिल, दिल है
अपना मालिक खुद है
आज नहीं तो कल
इस जन्म नहीं, तो अगले में
पा ही लेगा मंजिलें ... !!©
बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,
ReplyDeleterecent post : प्यार न भूले,,,
दिल की छुई मुई हारमोनियम धड़कने ...वाह!!
ReplyDeleteहारमोनियम धड़कने!! मजा आ गया
ReplyDeleteऐसा ही कुछ >> http://corakagaz.blogspot.in/2013/05/whirling-memories.html