साधारण सा
असाधारण वह
एक साथ कैसा कठोर
सुकोमल भी उतना ही
जीवन प्रगति
विकास का पुंज
कब कैसे
प्रीत की डोर बंधा
मेरे अंतरमन में चला आया
दुलारता मुझे
निहारता अपलक
डांटता
पुचकारता
छीलता तराशता
काटता जोड़ता
असंख्य कोणों से
थमा गया
मेरा ही मन चुपके से मुझे
सच्ची कहूं
भाव भले ही मेरे हों
शेष सब उसका है ...!!
आपकी यह पोस्ट आज के (०५ जून, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद तुषार जी..!!
Deleteसच में असाधारण रचना।।
ReplyDeleteघुइसरनाथ धाम - जहाँ मन्नत पूरी होने पर बाँधे जाते हैं घंटे।
वाह बहुत ही सुन्दर लेखन वसुंधरा जी लाजवाब हार्दिक बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteशानदार,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,बधाई
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया रचना
ReplyDeleteहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये एक बार अवश्य पधारें
टिप्पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
MY BIG GUIDE
नई पोस्ट
अब 2D वीडियो को देखें 3D में
जब सबकुछ उनका है ... तो भाव भी उनका ही है ... दोनों एक हों तो फरक क्यों ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेखन
ReplyDelete