आज
प्रियतम से
मिलने का मन था ..
मन था कि
बीच में
कुछ भी ना हो ..
ना पूजा
ना कोई मन्त्रपाठ
कुछ भी नहीं ..
बस एक
बाती जलाई
और बैठ गई
शायद
अभी कोई पुकार
कोई आहट..
धैर्य निलम्बित
कहीं कोई कनेक्शन
कोई विंडो
नहीं खुल रही थी ..
मैंने कहा
आज तुमसे
एक ही शब्द
कहना है
और..
उसे पता थी
मेरे हिय की बात
ब्रह्मांड
विंडो बन गया
सारे कनेक्शन
जुड़ते गए एक साथ
चला ही आया
मेरा सखा
जो तूने कहना है
उसे
सुनने के लिए तो मैं
कहीं से भी
कहीं तक जा सकता हूँ
गले लगाया
उसने मुझे
मैंने कान में कहा ...
“धन्यवाद !”
नीरव अनंतता में
कोई संगीत गूँज उठा
सृष्टि में आलोक फ़ैला
और फैलता ही गया
नाचने लगे ब्रह्मांड
पता नहीं
कहाँ से खिल उठे
कितने कितने फूल
प्रेमियों के
धडकते हुए दिल
एक दूजे को सुनने लगे
चुम्बन-बद्ध मौन
फ़ैल गया हर तरफ
फैलता ही जा रहा है
नहीं
मैं वह सब
नहीं कह पा रही
जो कहना था... ... !!
प्रियतम से
मिलने का मन था ..
मन था कि
बीच में
कुछ भी ना हो ..
ना पूजा
ना कोई मन्त्रपाठ
कुछ भी नहीं ..
बस एक
बाती जलाई
और बैठ गई
शायद
अभी कोई पुकार
कोई आहट..
धैर्य निलम्बित
कहीं कोई कनेक्शन
कोई विंडो
नहीं खुल रही थी ..
मैंने कहा
आज तुमसे
एक ही शब्द
कहना है
और..
उसे पता थी
मेरे हिय की बात
ब्रह्मांड
विंडो बन गया
सारे कनेक्शन
जुड़ते गए एक साथ
चला ही आया
मेरा सखा
जो तूने कहना है
उसे
सुनने के लिए तो मैं
कहीं से भी
कहीं तक जा सकता हूँ
गले लगाया
उसने मुझे
मैंने कान में कहा ...
“धन्यवाद !”
नीरव अनंतता में
कोई संगीत गूँज उठा
सृष्टि में आलोक फ़ैला
और फैलता ही गया
नाचने लगे ब्रह्मांड
पता नहीं
कहाँ से खिल उठे
कितने कितने फूल
प्रेमियों के
धडकते हुए दिल
एक दूजे को सुनने लगे
चुम्बन-बद्ध मौन
फ़ैल गया हर तरफ
फैलता ही जा रहा है
नहीं
मैं वह सब
नहीं कह पा रही
जो कहना था... ... !!
मगर शायद उसने सुन लिया था...
ReplyDeleteभाव-पगी कविता।