साँझ का बजरा
रात का किनारा छुने लगा,
जैसे कोई मुर्दा क्षण..
अन्धेरे होते पल का..
एक सिरा सूरज और
दुसरा सिरा चाँद के हाथ,
और उसे चुपचाप दोनो
रात के सन्नाटे मेँ
कहीँ दफनाने जा रहे होँ... ... !
रात का किनारा छुने लगा,
जैसे कोई मुर्दा क्षण..
अन्धेरे होते पल का..
एक सिरा सूरज और
दुसरा सिरा चाँद के हाथ,
और उसे चुपचाप दोनो
रात के सन्नाटे मेँ
कहीँ दफनाने जा रहे होँ... ... !
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