ओह !
किस कालीदास ने
अचानक से
मेघ भेज दिए ...
तीन रातेँ ,
तीन दिन से
लगातार बरसते रहे मेघ
अब थोड़ा
थके से हैँ...पर
किस कालीदास ने
अचानक से
मेघ भेज दिए ...
तीन रातेँ ,
तीन दिन से
लगातार बरसते रहे मेघ
अब थोड़ा
थके से हैँ...पर
कोई भरोशा नही
कब टपक पड़ेँगे
गाँव होता तो
पोखर भर आया होता
कुईँया उफना आयी होती
खेतोँ की पगडडी दिखती नही
और मै
हिरनी सी, लहराती
बलखाती इठलाती
कभी पोखर से
कमल तोड़ लाती
कभी मेढकोँ संग
टरटराती ...
कीचड़ से सने
घर आती
बाबा की डाँट खाती
माँ मुझको समझाती
अपनी जिद मनवाने खातिर
बिन बात के रोये जाती
बिन बात के रोये जाती... ... !!
कब टपक पड़ेँगे
गाँव होता तो
पोखर भर आया होता
कुईँया उफना आयी होती
खेतोँ की पगडडी दिखती नही
और मै
हिरनी सी, लहराती
बलखाती इठलाती
कभी पोखर से
कमल तोड़ लाती
कभी मेढकोँ संग
टरटराती ...
कीचड़ से सने
घर आती
बाबा की डाँट खाती
माँ मुझको समझाती
अपनी जिद मनवाने खातिर
बिन बात के रोये जाती
बिन बात के रोये जाती... ... !!
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