Sunday, October 14, 2012

अंतर्द्वंद

 अंतर्द्वंद
बिवश कर देता
हाथ चल पड़ते
रच जाती है
शब्दोंको मिलाकर
मन की पीड़ा से
मिश्रित
एक कविता

भाग नहीं पाती
इन शब्दों को बेवश छोड़

कई बार सोचती
कि अब नहीं....
अब नहीं !

अब सब छोड़
शांति की सांसे लूँगी
पर ऐसा होता नहीं
तन- मन कि पीडायें
झुण्ड बना ...
शब्दों को धकेल
दिमाग पर हाबी होते
और हाथ
चल पडतें है...शब्दों के सफ़र में ... ... !!

1 comment:

  1. "पर ऐसा होता नहीं"
    तन-मन कि पीडायें
    झुण्ड बना ...
    शब्दों को धकेल
    दिमाग पर हाबी होते
    और हाथ
    चल पडतें है...शब्दों के सफ़र में ... ... !!"

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