भीतरी उठा-पटक,
कशमकश तथा बाहरी
खीँचतान से उबकर, आखिर
फट ही पड़ा आसमान...
और घनघोर बारिश
पहरोँ हुई...
पुरवईया का थपेड़ा
कब तक सहे... ... ... !!
कशमकश तथा बाहरी
खीँचतान से उबकर, आखिर
फट ही पड़ा आसमान...
और घनघोर बारिश
पहरोँ हुई...
पुरवईया का थपेड़ा
कब तक सहे... ... ... !!
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