इस बार मायके से
माँ के उस
पुराने सन्दूक में पड़े
मूंझ के उस मोनिया ने
मुझे बहुत याद किया था
जिसने सम्भाल रखा था
मेरा बचपन
और उसकी विरासत
बैंक-लाकर की तरह
तरह तरह के
चिकने पत्थर
लाल हरी कुछ साबुत
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ
चिड़ियों की सुरंगी पाँखे
सीप के बटन
राखी के फुंदे
परांदे वाली चोटी
कैसे छुपा रखती थी इन्हें
सबकी नजरों से दूर
आह !
प्रीत के संस्कार
इन्हीं के दिए थे शायद
क्या करूं इनका ?
बचपन तो रहा नहीं
दस पैसे पांच पैसे वाले
पुराने सिक्के जरूर उठा लायी हूँ
पचपन तक
थोडा सा बचपन सहेज रखूं फिर भी ... !!
माँ के उस
पुराने सन्दूक में पड़े
मूंझ के उस मोनिया ने
मुझे बहुत याद किया था
जिसने सम्भाल रखा था
मेरा बचपन
और उसकी विरासत
बैंक-लाकर की तरह
तरह तरह के
चिकने पत्थर
लाल हरी कुछ साबुत
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ
चिड़ियों की सुरंगी पाँखे
सीप के बटन
राखी के फुंदे
परांदे वाली चोटी
कैसे छुपा रखती थी इन्हें
सबकी नजरों से दूर
आह !
प्रीत के संस्कार
इन्हीं के दिए थे शायद
क्या करूं इनका ?
बचपन तो रहा नहीं
दस पैसे पांच पैसे वाले
पुराने सिक्के जरूर उठा लायी हूँ
पचपन तक
थोडा सा बचपन सहेज रखूं फिर भी ... !!
बहुत जरूरी होता है बचपन की सहेजना ... यादों में ये ही सच्चे साथी होते हैं ...
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