कितने दिन यूँ ही उड़े
पँख बिन... धुआं हुए..
प्रतीक्षा
आखिर कितनी
मौसम बदले,
सावन बरसे
रिमझिम...अखियाँ तरसें
क्यों...
काहे न मन
गुनगुनाए
गीत-गुंजन खुशियों के
दिल की बातें
लिख-सुन फिर
हँस ले कुछ पल यूँ ही...
कितने दिन यूँ ही उड़े
पँख बिन... धुआं हुए...!
पँख बिन... धुआं हुए..
प्रतीक्षा
आखिर कितनी
मौसम बदले,
सावन बरसे
रिमझिम...अखियाँ तरसें
क्यों...
काहे न मन
गुनगुनाए
गीत-गुंजन खुशियों के
दिल की बातें
लिख-सुन फिर
हँस ले कुछ पल यूँ ही...
कितने दिन यूँ ही उड़े
पँख बिन... धुआं हुए...!
मौसम बदले,
ReplyDeleteसावन बरसे
रिमझिम...अखियाँ तरसें
सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह !!!बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,, क्या बात है,,
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।
ReplyDeleteजीवन की अनकही मनोदशा को व्यक्त करती
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए शुक्रिया!
एक दम दिल से निकली बेहतरीन
ReplyDeleteये तो एक स्थिति है मन की ... कुछ ही बदलनी होती है ... बदल दो झट में और गुनगुनाओ ... भावमय ...
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeletelatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
कितने दिन यूँ ही उड़े
ReplyDeleteपँख बिन... धुआं हुए.
क्या बात है जी... अद्भुत पंक्तियाँ ...पंख बिन तो जीवन ही धुआं है ...प्यार और कविता, दो ही तो पंख हैं आदमी के पास उड़ने के लिए.. और है क्या ..पंख हों तो SKY IS THE LIMIT ...अजीब बात यह है कि दुनिया सबसे पहले आपके पंख ही कतरती है ...हम अपने बच्चों से प्यार करते हैं उनके पंख कतरते हुआ... नेता अपने लोगों से प्यार करते हैं उनके पंख कतरते हुए... मिसालें देने लगूं तो एक ग्रन्थ ही निकल आये ...अति उत्तम और पूर्ण रचना.