Wednesday, July 17, 2013

जिन्दगी तो हर कदम



जिन्दगी तो हर कदम

पुकारती रही
तुमने सुना ही नहीं

नज़रें नीचे किये चलते रहे

वह तो
फैली थी खुशबू सी
हर तरफ
तुमने सूंघी ही नहीं
उसकी महक

वह तो
आस लगाए
तकती रही तेरी राह
और तुम
जुगनुओं के पीछे
जाने कहाँ से
किधर को भटका किये

और यों
वक्त की मुट्ठी से
जिंदगी के
छोटे-छोटे पल-छिन
छूटते फिसलते
बिखरते रहे ...!
ïïï

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना ,

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  2. जिन्दगी तो हर कदम
    पुकारती रही
    तुमने सुना ही नहीं

    नज़रें नीचे किये चलते रहे

    वह तो
    फैली थी खुशबू सी
    हर तरफ
    तुमने सूंघी ही नहीं
    उसकी महक



    बहुत सुन्दर लेख

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  3. बेहतरीन और बहुत कुछ लिख दिया आपने..... सार्थक अभिवयक्ति..

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।

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  5. निसंदेह साधुवाद योग्य रचना....

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