एक
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पलकें निश्चल
पुतलियों में हलचल
स्वप्न क्यूँ देखूं तेरा ही
बार-बार, हर बार...!!
दो
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बोझिल,बेनूर शाम
मटीआला आसमान
समय दिन कोई हो
'नदी'
बहती बिलकुल मुझसी हो... !!
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पलकें निश्चल
पुतलियों में हलचल
स्वप्न क्यूँ देखूं तेरा ही
बार-बार, हर बार...!!
दो
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बोझिल,बेनूर शाम
मटीआला आसमान
समय दिन कोई हो
'नदी'
बहती बिलकुल मुझसी हो... !!
बहुत उम्दा ... दोनों ख्याल खूबसूरत ... नदी का काम है बहना ...
ReplyDeleteसच कहा आपने नदी का काम है बहना ...
Deleteआभार !!
नदी और विचारों का बहना ...बहुत जरुरी है ...खड़े पानी और विचारों में गंध ना पड़े इस लिए ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात अनु जी
Deleteसुंदर रचनाये |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आप सबको !
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteआभार सर !
Deletebahte nadi se kal kal karti kshanikayen... behtareen :)
ReplyDeleteधन्यवाद जी !!
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