Sunday, July 14, 2013

गीली-गीली धूप में

तेरी आवाज
दूर से
खिल-खिलाता सा कोई बादल
गीली-गीली धूप में
तर-ब-तर लिपटा जैसे प्यार

चुपके से उतर कर
धरती के अन्तस् को
भिगोने लगा है

पत्ता-पत्ता हरा होने लगा है...!!

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर......
    सावन सा प्यार......

    अनु

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  2. मेरी पहली टिप्पणी लगता है आपके स्पैम बोक्स मे गई ...

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  3. नासवा जी...मुझे आपकी और कोई टिप्पड़ी नही दिखी...और मैं ब्लॉग के मामले में अभी बुद्धू हूँ अभी,, सच्च बहुत कुछ समझ नही आया अभी...कई लोगों को देखती हूँ की उनके वाल पर उनका छापा हुआ किताब और पत्रिका पेपर का दिखता रहता है ,मुझे आता ही नही ओ सेटिंग्स ...हलाकि कई जगह आये हैं कवितायें मेरी...
    आप सबको तो यहीं कमेन्ट में से ढूढ़ कर पहुँच जाती हूँ ...
    आप सबका हौसला अफजाई बहुत मायने रखता है ,आप सबको पढ़कर बहुत अच्छा लगता है..

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  4. चुपके से उतर कर
    धरती के अन्तस् को
    भिगोने लगा है
    .........................बिल्‍कुल सच कहा ... आपने

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