तेरी आवाज
दूर से
खिल-खिलाता सा कोई बादल
गीली-गीली धूप में
तर-ब-तर लिपटा जैसे प्यार
चुपके से उतर कर
धरती के अन्तस् को
भिगोने लगा है
पत्ता-पत्ता हरा होने लगा है...!!
दूर से
खिल-खिलाता सा कोई बादल
गीली-गीली धूप में
तर-ब-तर लिपटा जैसे प्यार
चुपके से उतर कर
धरती के अन्तस् को
भिगोने लगा है
पत्ता-पत्ता हरा होने लगा है...!!
बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteसावन सा प्यार......
अनु
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
Beautiful...
ReplyDeleteमेरी पहली टिप्पणी लगता है आपके स्पैम बोक्स मे गई ...
ReplyDeleteनासवा जी...मुझे आपकी और कोई टिप्पड़ी नही दिखी...और मैं ब्लॉग के मामले में अभी बुद्धू हूँ अभी,, सच्च बहुत कुछ समझ नही आया अभी...कई लोगों को देखती हूँ की उनके वाल पर उनका छापा हुआ किताब और पत्रिका पेपर का दिखता रहता है ,मुझे आता ही नही ओ सेटिंग्स ...हलाकि कई जगह आये हैं कवितायें मेरी...
ReplyDeleteआप सबको तो यहीं कमेन्ट में से ढूढ़ कर पहुँच जाती हूँ ...
आप सबका हौसला अफजाई बहुत मायने रखता है ,आप सबको पढ़कर बहुत अच्छा लगता है..
चुपके से उतर कर
ReplyDeleteधरती के अन्तस् को
भिगोने लगा है
.........................बिल्कुल सच कहा ... आपने
bahut sunder ...
ReplyDeletewaah !!
गीली धूप.....वाह
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