Tuesday, August 20, 2013

तुम्हारी ख़ामोशी


तोड़ती है मुझे

देखो तो
बरौनियोँ पर
ओस की बूंदें
 झूल आई हैँ

थोड़ा झुको न
अपने गुलाब से
पंखुड़ियोँ को रख देखो

नही रख सकोगे न ?

हाँ...
मत रखो
खारेपन
तुम्हारे स्न'युओँ मेँ
भीन जायेगा

और ओठो की
गुलाबीपन
नष्ट न हो जाये

यूँ ही झूलने दो
इसकी तो फितरत है
भींगने और सूख जाने की ... !!

5 comments:

  1. रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  2. रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  3. सुंदर सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ!!
    RECENT POST : सुलझाया नही जाता.

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  4. यूँ ही झूलने दो
    इसकी तो फितरत है
    भींगने और सूख जाने की ... !!

    बहुत ही नायाब रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. भावुक करती अभिव्यक्ति

    शब्दों की मुस्कराहट पर....तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!

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