तोड़ती है मुझे
देखो तो
बरौनियोँ पर
ओस की बूंदें
झूल आई हैँ
थोड़ा झुको न
अपने गुलाब से
पंखुड़ियोँ को रख देखो
नही रख सकोगे न ?
हाँ...
मत रखो
खारेपन
तुम्हारे स्न'युओँ मेँ
भीन जायेगा
और ओठो की
गुलाबीपन
नष्ट न हो जाये
यूँ ही झूलने दो
इसकी तो फितरत है
भींगने और सूख जाने की ... !!
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteरक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteसुंदर सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
यूँ ही झूलने दो
ReplyDeleteइसकी तो फितरत है
भींगने और सूख जाने की ... !!
बहुत ही नायाब रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
भावुक करती अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कराहट पर....तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!