Friday, August 9, 2013

इस नील स्यामल

 
अनन्तता में

धकेल कर मुझ निर्वसना को
कोई चुरा ले गया है मेरे शब्द...
मेरी ध्वनियाँ... मेरे चित्र...

जा बैठा है ना जाने 
किस कदम्ब की शाख पर

कैसे पुकारूँ सखी... मैं तो गई...!!

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