जिसके संग निडर
गुजर जाती है मेरी रात
सबकी नज़रों से दूर...
मैं धरा,
हर पल नयी
नए स्वप्नों को जन्म देती
मुहब्बत के नशे में... ‘धुत्त’
चलो,
फिर से उसकी बात करें
वह मेरी किताब है
उसका एक-एक पन्ना
मेरी जुबान पर
उसे पढने की
मेरी प्यास का
कोई अंत नहींगुजर जाती है मेरी रात
सबकी नज़रों से दूर...
मैं धरा,
हर पल नयी
नए स्वप्नों को जन्म देती
मुहब्बत के नशे में... ‘धुत्त’
चलो,
फिर से उसकी बात करें
वह मेरी किताब है
उसका एक-एक पन्ना
मेरी जुबान पर
उसे पढने की
मेरी प्यास का
फिर से कहो न
क्या… कहा...चाँद... क्या ?
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