तेरी
ही शब्द रचना हूँ
कितने
प्यार से
रचा
है तुमने मुझे
सब
याद है
जो
कुछ भी
तुमने
मेरे साथ किया
वही
सब
जो
वसंत करता है
फूलों
के साथ
प्रसन्न
पुष्प सी
खिल
गयी हूँ मैं
मेरी
देह में तेरी गंध
समा
चुकी है..
एक
सम्मोहन
दो
काया को एक कर के
स्तब्ध
सा खड़ा
सम्मोहित
अपने
ही कृत्य पर
मेरी
धडकनों में
तेरा
प्रेम साफ़-साफ़
सुनाई
दे रहा है
मनमीत
के
अधर
अनुराग का संगीत
अभी
तक थिरक रहा है
तेरा
वह चुम्बन
मुझे
याद है प्रिय
जिसके
ताप ने
मुझे
शीतल किया…
निशा
साक्षी वह समागम
किस
विलक्षण प्रणयसूत्र में
हमें
बाँध गया...
मुझे
याद है...!
बहुत ही सुंदर और गहन भाव, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामारम.
अर्थ पूर्ण .... प्रेम को पूर्णतः समर्पित रचना ...
ReplyDeleteप्रेम का संगीत निकल रहा है इस रचना से ... लाजवाब ...
आभार ,बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी !
ReplyDeleteताऊ जी ,,, नासवा जी ...आप सभी मित्रों की उपस्थिति बहुत हौसला देती है...हार्दिक आभार !
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसपने सपनों में डूब जाते हैं
सपने बनकर सच हो जाते हैं !
सर जी.....बहुत सुन्दर...वाह.....
Deleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका !!
Deleteतेरी ही शब्द रचना हूं
कितने प्यार से रचा है तुमने मुझे
सब याद है
जो कुछ भी तुमने मेरे साथ किया
वही सब
जो वसंत करता है फूलों के साथ
प्रसन्न पुष्प सी खिल गयी हूं मैं
मेरी देह में तेरी गंध समा चुकी है..
एक सम्मोहन
दो काया को एक कर के स्तब्ध सा खड़ा
सम्मोहित अपने ही कृत्य पर
मेरी धडकनों में तेरा प्रेम साफ़-साफ़ सुनाई दे रहा है
मनमीत के अधर अनुराग का संगीत अभी तक थिरक रहा है
तेरा वह चुम्बन मुझे याद है प्रिय
जिसके ताप ने मुझे शीतल किया…
निशा साक्षी वह समागम
किस विलक्षण प्रणयसूत्र में हमें बांध गया...
मुझे याद है...!
वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
रचना प्रभावित करने वाली है...
बधाई !
आदरणीया वसुंधरा पाण्डेय जी
नायाब मोती भरे पड़े लगते हैं , इस समंदर में
पढ़ने आना पड़ेगा आपकी अन्य रचनाएं फ़ुर्सत में...
:)
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ह्रदय से स्वागत और अभिनन्दन है राजेन्द्र जी आपका..आपका स्नेह है ये...मैं बस सीख रही हूँ कहीं त्रुटियाँ होंगी तो भी बताएं आप सब सुधारने की कोशिस करुँगी...आभार !!
Deleteशुक्रिया मोहन जी...आपके ब्लॉग को फालो किया मैंने !
ReplyDeleteवाह बहुत उत्तम और कोमल भाव प्रणय सूत्र में बंधकर कवी की रचना सी महसूस करना या प्रेम में एकाकार होकर प्रणय बंधन सा महसूस करना दोनों ही प्रेम की उच्चतर स्थिति ही है .. सुन्दर कविता .
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