न मौसम बदलता है,
न एहसान चढाता है
न जलता-जलाता,
बस खुद को लुटाता है
समझता है .मेरी व्यथा
जी जान से
मेरी थकान मिटाता है
दुबला जाता कैसे
मेरे गम में
और पाकर मुझे
कुप्पे सा फूल जाता है
चाँद की बात न कर
वह तो हर रात नया रूप
यौवन भरपूर..
मुझे रिझाने में जुटान एहसान चढाता है
न जलता-जलाता,
बस खुद को लुटाता है
समझता है .मेरी व्यथा
जी जान से
मेरी थकान मिटाता है
दुबला जाता कैसे
मेरे गम में
और पाकर मुझे
कुप्पे सा फूल जाता है
चाँद की बात न कर
वह तो हर रात नया रूप
यौवन भरपूर..
उसका यह सिलसिला तो
सदियों से है...
उसके जैसी चाह
उसके जैसी शोखी
और भला किस में है ?
प्रेमियों का प्रेम है
मेरे इस चाँद की बात न कर... !!
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