Tuesday, February 28, 2012

''पूर्ण नहीं होती''

दिनचर्या की
हाड-तोड़ मेहनत के बाद
जब भी खाली सपहे पर
उकेरना चाहा तुम्हे..
तुम 'पूर्ण 'नहीं होते...

हार के आती...
सपहे को झाड़ती,
रंगों को निहारती
देखती.....
पलट,पलट,पलट
कमी क्या है मुझमे ..?

शंका रूपी नागिन की
हिलती पूंछ की तरह
मन शंकित होता...!

मन खुद से कहता ...
ऐसे शंका का क्या...?
शंका कर.....
नचिकेता की तरह
श्वेतकेतु की तरह शंका कर
भातखंडे के संगीत वाले
शिष्य की तरह शंका कर
जो,कुरेद-कुरेद कर
रागों का तत्व निकालता
और उसे आत्मसात करता ..!

फिर मै अपने से कहती....
मेरी शंकाएं तो 'फटीचर' की तरह है
जिसे रंगों का ज्ञान नहीं...वो
बनाने चली 'तेरी' 'सम्पूर्ण आकृति' ...???

Saturday, February 18, 2012

सुन रहे हो न ....???

आधी-अधूरी 'भूख',
आधी-अधूरी 'नींद'....
पर.....
'तुम' तुम्हारी 'यादें' ...
पूरी रहती हर पल'...
रोज सोचती हूँ कह दूँ
तुमसे...
जो कहना चाहती हूँ
पर कह नहीं पाती...

बस..
आँखे गीली हो जाती है...
और .....
दुपट्टे के कोरे
को घुसा देती
कि.. सोख ले मेरे
सारे जज्बातों को
और कोशिस करती हँस दूँ....


क्या करूँ हंसने का दिखावा
हमसे नहीं होता...
पर अन्दर ही अन्दर
जज्ब कर ऊपर से
हँस लेते हैं हम

सुनो...देव...!

एक दर्द होता है....
'मीठा' है या 'तीखा'
समझ नहीं आता...
पर होता है बाएं तरफ ,
जहाँ दिल होता है
जैसे कुछ टूटता हुआ
किर्ची जैसे चुभता हुआ..
साँसों के 'आवाजाही' में भी
तकलीफ होती है ...

सुन रहे हो न ....???
बहुत कुछ कहना है...
बहुत कुछ बाकि है....
बाद में कहूँगी...

अनवरत प्रवाह...समय का !!

क्या हो गया है
क्यूँ सो नहीं पा रही
बादलों से ढकी ...
जाड़े की रात
ठिठुरे हुए खामोश पेड़,
अत्यंत अरुचिकर स्थान पर
नीलिमा में डूबे हुए
परम क्षणों की
एक अजस्र धारा,
अन्दर कहीं प्रवाहित हो रही

पलकें छलछला आतीं
बार -बार
चांदनी में टहलने का मन ..
पर ठण्ड के कारण ...
निकलना मुमकिन नहीं

लाइट बुझा ...
खिडकियों के परदे हटा
बहुत देर तक खड़ी रही,
सामने खिड़की के
एक पेड़ और उस पर
हलकी चांदनी के
विशाल धब्बे दिख रहे थे

कभी -कभी मोर की
आवाज आती हुई...
एक कोई और पंक्षी
अनवरत रट से बोलता रहा
क्या चक्रवाक था ???

चांदनी भी कांप रही थी
जैसे कोई शांत जल में
कंकड़ डाल उसे कँपा दे...
सब के बीच
इतनी अकेली क्यूँ ?

अचानक मोबाईल के...
अलार्म ने बताया कि मै भी
जाग रहा तुम्हारे संग ...

उठी ,सोच रही थी की
ये...समय का
अनवरत प्रवाह है
इसे मै 'किसी प्रकार'
अंजलि में लेकर पी जाती...!!