Monday, March 30, 2015

तिरते बादलों की

तुम आये..
तुम चले भी गए
सूखे पत्तों के ऊपर
अंजुली उड़ेलते हुये
भागे जा रहे .. ..
तिरते बादलों की
टप्-टप् टप्-टप्
बूंदियों की तरह ... !!

Sunday, March 22, 2015

ओ मेरे प्रेम ..

... हर रात कोई आता है मुझे सजाता है सुबह उठकर देखती हूँ आइना मन आत्म-मुग्ध हो जाता है कौन है ? मुझे सजाते चले जाने का उसे यह क्या शौक है ? वह भी बिना शोर... चुपचाप ! उसका मुझे सजाना मेरे ही भीतर बिना किसी आहट के उतर आना... कितनी नींद कितना आहार कितना सहेजना बदलना तराशना कितना व्यर्थ को हटाना (किसी और दृष्टि से उसे भी सार्थक करता हुआ) सारे हिसाब-किताब उसे मालूम हैं कैसा प्रेमी वह मेरा मैंने कभी उसकी कदर ही न जानी लादती रही उसके निर्माण पर परेशानी दर परेशानी .. फालतू के चिंतन यह नहीं और वो नहीं ! ओ मेरे प्रेम बड़ी देर में समझ पायी हूँ मैं तेरी कहानी

Saturday, March 14, 2015

कहाँ रे पिया ...

सारंगी सा बजता 
रात का यह चौथा प्रहर
रटता एक ही धुन कहाँ रे पिया निकालता रक्त पिंजरे की कैद से ले चलता घाटियों की अमरबेल कंदराओं में निर्झरों के पास पिलाता जीवन अमृत मैं और तुम से परे का इक स्वाद...!

Friday, March 13, 2015

मुझको भी अन्दर आने दो

ओ मेरे पोखर ,ओ मेरे पोखर
कांच सा सुन्दर क्यूँ दिखते हो ?
जी करता छपाक से कुदूं
और तेरी होकर रह जाऊं

मुझको भी अन्दर आने दो
कुमुदिनी सा खिल जाने दो

मछलियों सा उधम मचाऊं
इस कोने उस कोने जाऊं
डाले जब भी बंशी कोई
और कहाँ तुझमे छुप जाऊं

मैं तो रह गयी तेरी होकर
ओ मेरे पोखर ,ओ मेरे पोखर ...!