पर्यावरण दिवस पर...
जहाँ देखो,
सूखी-प्यासी
हांफती सी
दरकने दरारें
सब कुछ
जैसे लुटा-पिटा
मिटा-मिटा सा
नदी, जंगल,
पहाड़ सब उदास...
देखो न ..
धूल-धूसरित
वसुधा की शान
सारा अभिमान...
आखिर
इरादे क्या हैं तुम्हारे ?
जहाँ देखो,
सूखी-प्यासी
हांफती सी
दरकने दरारें
सब कुछ
जैसे लुटा-पिटा
मिटा-मिटा सा
नदी, जंगल,
पहाड़ सब उदास...
देखो न ..
धूल-धूसरित
वसुधा की शान
सारा अभिमान...
आखिर
इरादे क्या हैं तुम्हारे ?