सच कहूँ
तो मुझे कभी समझ में नही आया
कि जीवन में वह कौन सा क्षण था
जब पहली बार मिले थे तुम ...
लगे थे मित्र से भी कुछ अधिक वल्लभ ,
भाई से भी कुछ अधिक अपने ,
सखा से भी कुछ अधिक स्नेही,
पिता से भी कुछ अधिक पवित्र !
यों तो सबके दुलारे हो
पर मुझे कुछ अधिक प्यारे हो
जो नहीं आता मुझे
सब सिखलाते हो
रास्ता दिखाते हो मेरी
नादानियों पर मुस्कुराते हो
आशीष बरसाते हो
हे मेरे शक्तिमान
जब चाहूँ जैसे चाहूँ..
पुकार लूं दप दप दमकते
स्नेह लुटाते
चले आते हो अविलम्ब
हे मेरे सोलह कला सम्पूर्ण...
क्या कहूँ ..
किस रिश्ते से समझूं तुम्हें
इंसान या भगवान .. !
महान कह कर तुम्हें छोटा न करूंगी
इंसान कह कर बराबरी में नहीं रख सकती
भगवान !
नहीं नहीं ! तुम तो मेरे इतने इतने इतने अपने हो... !!
(जन्माष्टमी की अनेकानेक शुभकामनाये मित्रों )
No comments:
Post a Comment