Friday, August 2, 2013

मेरी रगों में बहते हो...

जाओ...
चले जाओ
पर जाओगे कहाँ ?

तेरी अनुपस्थिति भी
मेरे लिए एक उपस्थित है

ना निकले सूरज
तेरा उजाला
दिल से जानेवाला नहीं

अब तो
बिना चाँद के भी
मेरी रातें चांदनी हो जाती हैं

अंतस में
नदिया की तरह
जीवन की तरह
शब्द-शब्द तुम
मेरी रगों में बहते हो...
जाओ
पर मुझे छोड़ कर, जाओगे कहाँ... ?
 

16 comments:

  1. आपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. जो अभिन्न है वह कैसे अलग हो सकता है !

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद अरुण जी ...!

    आभारी हूँ प्रतिभा जी आपके कदम यहाँ तक आये...!!

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  4. जीवन के साथ हैं शब्द ....बना रहे ये नाता

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (04-08-2013) के चर्चा मंच 1327 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  6. बहुत कुछ कई बार आसान नहीं होता ... यादों का जाना भी बस में नहीं होता ...
    रागिन से निकाल बाहर करना आसान नहीं जो खून की तरह होते हैं ...

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  7. तेरा उजाला
    दिल से जानेवाला नहीं

    :) :)

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