Wednesday, August 14, 2013

दिल के पराग पर



जलप्रपात से
गिरते हैं उसके अक्स

कैसा मुहफट

“क्या हुआ...?
प्यार हो गया..?

गलती हो गई...?
कुछ बुरा हुआ क्या...?”

इस चाँद का क्या करूं...?

4 comments:

  1. अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
    आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
    सादर...!

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