Tuesday, August 20, 2013

स्वप्न में जी रही


तेरी ही शब्द रचना हूँ
कितने प्यार से
रचा है तुमने मुझे

सब याद है
जो कुछ भी
तुमने मेरे साथ किया

वही सब
जो वसंत करता है
फूलों के साथ

प्रसन्न पुष्प सी
खिल गयी हूँ मैं

मेरी देह में तेरी गंध
समा चुकी है..

एक सम्मोहन
दो काया को एक कर के
स्तब्ध सा खड़ा
सम्मोहित
अपने ही कृत्य पर

मेरी धडकनों में
तेरा प्रेम साफ़-साफ़
सुनाई दे रहा है
मनमीत के
अधर अनुराग का संगीत
अभी तक थिरक रहा है

तेरा वह चुम्बन
मुझे याद है प्रिय
जिसके ताप ने
मुझे शीतल किया

निशा साक्षी वह समागम
किस विलक्षण प्रणयसूत्र में
हमें बाँध गया...

मुझे याद है...!

11 comments:

  1. बहुत ही सुंदर और गहन भाव, बहुत शुभकामनाएं.

    रामारम.

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  2. अर्थ पूर्ण .... प्रेम को पूर्णतः समर्पित रचना ...
    प्रेम का संगीत निकल रहा है इस रचना से ... लाजवाब ...

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  3. आभार ,बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी !

    ताऊ जी ,,, नासवा जी ...आप सभी मित्रों की उपस्थिति बहुत हौसला देती है...हार्दिक आभार !

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  4. बहुत सुंदर !
    सपने सपनों में डूब जाते हैं
    सपने बनकर सच हो जाते हैं !

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  5. वाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  6. तेरी ही शब्द रचना हूं
    कितने प्यार से रचा है तुमने मुझे

    सब याद है
    जो कुछ भी तुमने मेरे साथ किया
    वही सब
    जो वसंत करता है फूलों के साथ

    प्रसन्न पुष्प सी खिल गयी हूं मैं
    मेरी देह में तेरी गंध समा चुकी है..

    एक सम्मोहन
    दो काया को एक कर के स्तब्ध सा खड़ा
    सम्मोहित अपने ही कृत्य पर

    मेरी धडकनों में तेरा प्रेम साफ़-साफ़ सुनाई दे रहा है
    मनमीत के अधर अनुराग का संगीत अभी तक थिरक रहा है

    तेरा वह चुम्बन मुझे याद है प्रिय
    जिसके ताप ने मुझे शीतल किया…

    निशा साक्षी वह समागम
    किस विलक्षण प्रणयसूत्र में हमें बांध गया...
    मुझे याद है...!

    वाह ! वाऽह…! वाऽहऽऽ…!
    रचना प्रभावित करने वाली है...
    बधाई !

    आदरणीया वसुंधरा पाण्डेय जी
    नायाब मोती भरे पड़े लगते हैं , इस समंदर में
    पढ़ने आना पड़ेगा आपकी अन्य रचनाएं फ़ुर्सत में...
    :)

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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    1. ह्रदय से स्वागत और अभिनन्दन है राजेन्द्र जी आपका..आपका स्नेह है ये...मैं बस सीख रही हूँ कहीं त्रुटियाँ होंगी तो भी बताएं आप सब सुधारने की कोशिस करुँगी...आभार !!

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  7. शुक्रिया मोहन जी...आपके ब्लॉग को फालो किया मैंने !

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  8. वाह बहुत उत्तम और कोमल भाव प्रणय सूत्र में बंधकर कवी की रचना सी महसूस करना या प्रेम में एकाकार होकर प्रणय बंधन सा महसूस करना दोनों ही प्रेम की उच्चतर स्थिति ही है .. सुन्दर कविता .

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