Wednesday, March 14, 2012

बसंत

बीत गया बसंत
तेरे आगमन की यादे
शेष है
पतझर के मौसम में
ये कैसा श्रृंगार हुआ था
बसंत का आगमन तो दूर
मेरे मन में
तेरा आगमन
बार - बार हुआ था
नैस्त्रशियम और पैंजी के
फूलों से ज्यादे
सुन्दर, खुबसूरत
आम के बौरों से भी
ज्यादा महकदार -
ऐ मेरे यार,
हवा जैसे...
दोशीजा की कलियों के आंचल
और लहरों के मिजाज से
छेड़खानी करती ,
मेरे मन में तेरी आहट
एक नयी अनुभूति..
तुम सुबह से भी ज्यादा मासूम
प्रभाती गाकर..
फूलों को जगा देने वाले
देवदूत मेरे
सूर्योदय के गुलाबी पंखुडियां
बिखेरने वाले,
सुनहरे पराग की एक बौछार
सुबह के ताजे फूलों सी बिछ रही
मेरे तन-मन में
अब भी शेष ... !!

Saturday, March 10, 2012

Holi

रंग-बिरंगा शहर
गाड़ियों के हार्न
बहावदार आवाजें
साफ़ -सुथरे हँसते आदमी
खूशबू फैलाती औरतें
... लाल-पीला,हरा-नीला रंग
साथ में भंग
और हुडदंग...

होरी के गीत
गीत के हर कड़ी के बाद
ढोलकों की ठनक थम सी जाती !

कभी-कभी सितार की आवाज
ख़ामोशी के झटके के बाद
मध्य लय में निकलते हुये
सितार की गत उचे स्वर से उभरती

और....
निश्शब्द्ता की घाटी में
स्पष्ट अनुगूँज छोडती ,खो जाती !

बस एक 'मै'
किसी बरसाती नाले की
झुर्रीदार सतह पर
एक तिनके की
तरह, उठती गिरती बहे जा रही....

अचानक से तेज रौशनी का सैलाब
छोडती हुई ढोलकें,
मेरा पूरा अस्तित्व 'तुम'पर टिक गया ... !!