Sunday, November 25, 2012

मिल नहीं पाऊँगी

बिना शोर के
धीरे-धीरे,
हर पल
कुछ घुट रहा है
कुछ टूट रहा है
सुबह
जब जागता है सूरज
टटोलती हूँ खुद को
कहीं कुछ कम
हो चुका होता है..
पता नहीं क्या ?
ऐसे ही घिसती रही
तो एक दिन
साबुत दिखने पर भी
मिल नहीं पाऊँगी
खुद से
तुमसे
या किसी से भी ...!!

Friday, November 23, 2012

बावरा आवारा दिल

सन्नाटे तोड़ती
पटरियाँ चीरती
धरड़-धरड़ रेल
पा लेती है मंजिलें

पर यह दिल
दिनरात धडकता
बावरा आवारा दिल

कितना ही चाहे
तुम तक पहुंच पाना
वहीं का वहीं रहता है
जहाँ से चलता है

क्या तुलना ले बैठे हो ?

कहाँ
लोहे और तेल और
समाज की धरड़-धरड़
कहाँ
दिल की छुई-मुई
हारमोनियम धडकनें

फिर भी दिल, दिल है
अपना मालिक खुद है

आज नहीं तो कल
इस जन्म नहीं, तो अगले में
पा ही लेगा मंजिलें ... !!©