Friday, November 23, 2012

बावरा आवारा दिल

सन्नाटे तोड़ती
पटरियाँ चीरती
धरड़-धरड़ रेल
पा लेती है मंजिलें

पर यह दिल
दिनरात धडकता
बावरा आवारा दिल

कितना ही चाहे
तुम तक पहुंच पाना
वहीं का वहीं रहता है
जहाँ से चलता है

क्या तुलना ले बैठे हो ?

कहाँ
लोहे और तेल और
समाज की धरड़-धरड़
कहाँ
दिल की छुई-मुई
हारमोनियम धडकनें

फिर भी दिल, दिल है
अपना मालिक खुद है

आज नहीं तो कल
इस जन्म नहीं, तो अगले में
पा ही लेगा मंजिलें ... !!©

3 comments:

  1. दिल की छुई मुई हारमोनियम धड़कने ...वाह!!

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  2. हारमोनियम धड़कने!! मजा आ गया
    ऐसा ही कुछ >> http://corakagaz.blogspot.in/2013/05/whirling-memories.html

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