Friday, May 31, 2013

तेरा प्‍यार

लट्टू की लपेट
तेरा प्‍यार

मैं नाच रही हूँ
गोल-गोल
अपनी ही धुरी पर

जैसे नाच रहा ब्रह्मांड... !!

Monday, May 13, 2013

तितली सा मन तो उड़ेगा ही.

सूरज घुटे तो घुटे
चाँद छिजे तो छिजे
अपना तो
तितली सा मन
उड़ेगा ही
प्रीत का वरदान है...

गुलाल की दीवार है
इंगुर की छ्त है
कमल का पलंग है
फूलों की सेज है...

खुशियों का झूला तो
झूलेगा ही...

तितली सा मन तो
उड़ेगा ही...!

बड़ी खलबली है इन दिनों

“लिखे थे
हमने भी कई बार कई ख़त
पसीने और आंसुओं से
नक्काशी थी उनकी इबारत

हर बार
चिंदी-चिंदी होते रहे
(मजबूर हाथो में जड़े )
वर्जनाओं के आरे में

और
अब हम लिखते हैं
सारे ख़त
तमाम वर्जनाओं के नाम
उनमे छिपा रखे हैं हमने
छोटे-छोटे प्रेम

वर्जनाओं की दुनिया में
बड़ी खलबली है इन दिनों ...!”

तेरा आना

तेरा आना
मुखर कर जाता है मुझे
मेरी निसंगता को
धीमे से छेड़ जाता है

सच कहूँ तो
एक पल को आते हो
कई जन्मो -की प्यास
तृप्त कर जाते हो...!

तुम सब हार चुके हो

प्यार
कोई बच्चों का खेल नहीं
एक धवल सी हिनहिनाहट है

जिस क्षण
तुम्हारी पात्रता सिद्ध होती है
ब्रह्मांडों के अंतराल नापती हुई
यह ठीक उसी क्षण
तुम्हारे पीछे खड़ी
अपने स्यामल होंठो

और फडफडाते नथुनों
और घने अयाल के साथ
तुम्हारी गर्दन को छू रही होती है

सकपकाते हो
आगे पीछे गति
बनाते घटाते
बचने का प्रयास करते हो

पर अब
कुछ नहीं हो सकता

तुम्हारी बगल खड़ी खनखनाहट
तुम्हें जीत का एहसास देती है

और तुम
एक झटके में
सवार हो जाते हो

तुम
सब हार चुके हो

असल में
तुम अब हो ही नहीं.
वही है.. .. ..!!

इस चाँद का क्या करूं..

दिल के पराग पर
जलप्रपात से
गिरते हैं उसके अक्स

कैसा मुहफट ...!!

“क्या हुआ...?
प्यार हो गया..?
गलती हो गई...?
कुछ बुरा हुआ क्या...?”

इस चाँद का क्या करूं.. ..!

नाचने लगे ब्रह्मांड

आज
प्रियतम से
मिलने का मन था ..

मन था कि
बीच में
कुछ भी ना हो ..

ना पूजा
ना कोई मन्त्रपाठ
कुछ भी नहीं ..

बस एक
बाती जलाई
और बैठ गई

शायद
अभी कोई पुकार
कोई आहट..

धैर्य निलम्बित
कहीं कोई कनेक्शन
कोई विंडो
नहीं खुल रही थी ..

मैंने कहा
आज तुमसे
एक ही शब्द
कहना है

और..
उसे पता थी
मेरे हिय की बात

ब्रह्मांड
विंडो बन गया
सारे कनेक्शन
जुड़ते गए एक साथ

चला ही आया
मेरा सखा

जो तूने कहना है
उसे
सुनने के लिए तो मैं
कहीं से भी
कहीं तक जा सकता हूँ

गले लगाया
उसने मुझे
मैंने कान में कहा ...
“धन्यवाद !”

नीरव अनंतता में
कोई संगीत गूँज उठा
सृष्टि में आलोक फ़ैला
और फैलता ही गया

नाचने लगे ब्रह्मांड

पता नहीं
कहाँ से खिल उठे
कितने कितने फूल

प्रेमियों के
धडकते हुए दिल
एक दूजे को सुनने लगे

चुम्बन-बद्ध मौन
फ़ैल गया हर तरफ
फैलता ही जा रहा है

नहीं
मैं वह सब
नहीं कह पा रही
जो कहना था... ... !!

मौसम धूप-छाँव हुआ जाता है

जब भी
तेरा ख्याल आता है

दिल में
इक साज़ सा
बजने लगता है

चुप्पा सा
कोई राग गुनगुनाता है

मौसम
धूप-छाँव हुआ जाता है

जब भी
तेरा ख्याल आता है...!

ये 'प्रेम' है जोगी

न दिल में रखता है
न पलकों पे बिठाता है पर वह शख्स
मुझे बहुत याद आता है
इतनी जकडन
इतना बंधन
अघोरी सा उन्मुक्त स्वछंद स्वभाव उसका
बंधता नहीं
बाँध जाता है
पर वह शख्स
मुझे बहुत याद आता है

मेरी हद..को
अनहद्द...
किये जाती है
अवहेलना उसकी
उसे झेलना
मेरी ताकत
मेरी फितरत
आते जाते
सोते जागते
जब चाहे तब
किसी न किसी रंग में रंग ही जाता है
मनभावन वह शख्स
मुझे बहुत याद आता है
आवरण बनी सब झेला
'अडोल' हूँ आजमा लेना
चाहे जब
ये 'प्रेम' है जोगी
वरना
कौन किसे निभाता है
पर तू
मुझे बहुत याद आता है...!!