रंग-बिरंगा शहर
गाड़ियों के हार्न
बहावदार आवाजें
साफ़ -सुथरे हँसते आदमी
खूशबू फैलाती औरतें
... लाल-पीला,हरा-नीला रंग
साथ में भंग
और हुडदंग...
होरी के गीत
गीत के हर कड़ी के बाद
ढोलकों की ठनक थम सी जाती !
कभी-कभी सितार की आवाज
ख़ामोशी के झटके के बाद
मध्य लय में निकलते हुये
सितार की गत उचे स्वर से उभरती
और....
निश्शब्द्ता की घाटी में
स्पष्ट अनुगूँज छोडती ,खो जाती !
बस एक 'मै'
किसी बरसाती नाले की
झुर्रीदार सतह पर
एक तिनके की
तरह, उठती गिरती बहे जा रही....
अचानक से तेज रौशनी का सैलाब
छोडती हुई ढोलकें,
मेरा पूरा अस्तित्व 'तुम'पर टिक गया ... !!
bahut sundar ....!!!
ReplyDeletewah.....
ReplyDeleteबहुत खूब ... होली की तरंग और रंगों में डूब के आती उनकी याद की तरंग ...
ReplyDeleteसाधना भाभी .. :)
ReplyDeleteमृदुला जी ..आगमन और टिप्पड़ी के लिए दिल से आभार !!
नासवा जी .. धन्यवाद ,आभार
सुंदर पोस्ट बहन जी साधुबाद ...
ReplyDeleteblack back ground... mujhe achha nahi lag raha ... plz change it
धन्यवाद भईया जी ,आभार...!
ReplyDeleteलीजिये मैंने कर दिया दुसरे रंग में ब्लॉग को !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई .....
ReplyDeleteसुनील जी स्नेह के लिए आभार !
ReplyDeleteसुन्दर
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