Saturday, March 10, 2012

Holi

रंग-बिरंगा शहर
गाड़ियों के हार्न
बहावदार आवाजें
साफ़ -सुथरे हँसते आदमी
खूशबू फैलाती औरतें
... लाल-पीला,हरा-नीला रंग
साथ में भंग
और हुडदंग...

होरी के गीत
गीत के हर कड़ी के बाद
ढोलकों की ठनक थम सी जाती !

कभी-कभी सितार की आवाज
ख़ामोशी के झटके के बाद
मध्य लय में निकलते हुये
सितार की गत उचे स्वर से उभरती

और....
निश्शब्द्ता की घाटी में
स्पष्ट अनुगूँज छोडती ,खो जाती !

बस एक 'मै'
किसी बरसाती नाले की
झुर्रीदार सतह पर
एक तिनके की
तरह, उठती गिरती बहे जा रही....

अचानक से तेज रौशनी का सैलाब
छोडती हुई ढोलकें,
मेरा पूरा अस्तित्व 'तुम'पर टिक गया ... !!

10 comments:

  1. बहुत खूब ... होली की तरंग और रंगों में डूब के आती उनकी याद की तरंग ...

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  2. साधना भाभी .. :)


    मृदुला जी ..आगमन और टिप्पड़ी के लिए दिल से आभार !!

    नासवा जी .. धन्यवाद ,आभार

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  3. सुंदर पोस्ट बहन जी साधुबाद ...
    black back ground... mujhe achha nahi lag raha ... plz change it

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  4. धन्यवाद भईया जी ,आभार...!

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  5. लीजिये मैंने कर दिया दुसरे रंग में ब्लॉग को !

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  6. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई .....

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  7. सुनील जी स्नेह के लिए आभार !

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