तेरी
ही शब्द रचना हूँ
कितने
प्यार से
रचा
है तुमने मुझे
सब
याद है
जो
कुछ भी
तुमने
मेरे साथ किया
वही
सब
जो
वसंत करता है
फूलों
के साथ
प्रसन्न
पुष्प सी
खिल
गयी हूँ मैं
मेरी
देह में तेरी गंध
समा
चुकी है..
एक
सम्मोहन
दो
काया को एक कर के
स्तब्ध
सा खड़ा
सम्मोहित
अपने
ही कृत्य पर
मेरी
धडकनों में
तेरा
प्रेम साफ़-साफ़
सुनाई
दे रहा है
मनमीत
के
अधर
अनुराग का संगीत
अभी
तक थिरक रहा है
तेरा
वह चुम्बन
मुझे
याद है प्रिय
जिसके
ताप ने
मुझे
शीतल किया…
निशा
साक्षी वह समागम
किस
विलक्षण प्रणयसूत्र में
हमें
बाँध गया...
मुझे
याद है...!