Saturday, October 19, 2013

रेगिस्तान में

शिरा में
रक्त के हर क

रेगिस्तान में

पानी तलाशता है यह मन

पतझड़ में

बसन्त की आहट सुनता है।

बंजर धरती पर

फूलों की खेती करने को

अकुलाता है यह मन...।

ऐसी प्रतीक्षा क्यूँ

उम्मीदों का उद्वेलन क्यूँ

ऐसी अकुलाहट क्यूँ

ऐसी तस्वीरें रचता क्यूँ मन

जिनका कोई आधार नही

जिनकी कोई नियति नही..?

शायद यही जीवन है...।।

Thursday, October 17, 2013

ना रात ,ना दिन


ना उजाला ना अँधेरा ...

दोनों का ये संधिकाल ,जैसे
अतल से कुछ उभरता है

दिखता है..
ढँक जाता है

जैसे दो युग
आपस में मिल
विलीन हो रहे हों... !!