शिरा में
रक्त के हर क
रक्त के हर क
रेगिस्तान में
पानी तलाशता है यह मन
पतझड़ में
बसन्त की आहट सुनता है।
बंजर धरती पर
फूलों की खेती करने को
अकुलाता है यह मन...।
ऐसी प्रतीक्षा क्यूँ
उम्मीदों का उद्वेलन क्यूँ
ऐसी अकुलाहट क्यूँ
ऐसी तस्वीरें रचता क्यूँ मन
जिनका कोई आधार नही
जिनकी कोई नियति नही..?
शायद यही जीवन है...।।