आधी-अधूरी 'भूख',
आधी-अधूरी 'नींद'....
पर.....
'तुम' तुम्हारी 'यादें' ...
पूरी रहती हर पल'...
रोज सोचती हूँ कह दूँ
तुमसे...
जो कहना चाहती हूँ
पर कह नहीं पाती...
बस..
आँखे गीली हो जाती है...
और .....
दुपट्टे के कोरे
को घुसा देती
कि.. सोख ले मेरे
सारे जज्बातों को
और कोशिस करती हँस दूँ....
क्या करूँ हंसने का दिखावा
हमसे नहीं होता...
पर अन्दर ही अन्दर
जज्ब कर ऊपर से
हँस लेते हैं हम
सुनो...देव...!
एक दर्द होता है....
'मीठा' है या 'तीखा'
समझ नहीं आता...
पर होता है बाएं तरफ ,
जहाँ दिल होता है
जैसे कुछ टूटता हुआ
किर्ची जैसे चुभता हुआ..
साँसों के 'आवाजाही' में भी
तकलीफ होती है ...
सुन रहे हो न ....???
बहुत कुछ कहना है...
बहुत कुछ बाकि है....
बाद में कहूँगी...
बहुत सुन्दर वसुंधरा बहन
ReplyDeleteमेरे भी ब्लॉग पर आओ
ReplyDeleteबहुत खूब .... काश वो सुन सकें इस दर्द को ...
ReplyDeleteक्या करूँ हंसने का दिखावा.........ये पंक्तियाँ सबसे सुन्दर हैं।
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