Tuesday, June 4, 2013

असाधारण वह

साधारण सा
असाधारण वह

एक साथ कैसा कठोर
सुकोमल भी उतना ही

जीवन प्रगति
विकास का पुंज
कब कैसे
प्रीत की डोर बंधा
मेरे अंतरमन में चला आया

दुलारता मुझे
निहारता अपलक
डांटता
पुचकारता
छीलता तराशता

काटता जोड़ता
असंख्य कोणों से
थमा गया
मेरा ही मन चुपके से मुझे

सच्ची कहूं
भाव भले ही मेरे हों
शेष सब उसका है ...!!

8 comments:

  1. आपकी यह पोस्ट आज के (०५ जून, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद तुषार जी..!!

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  2. वाह बहुत ही सुन्दर लेखन वसुंधरा जी लाजवाब हार्दिक बधाई स्वीकारें

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  3. अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया रचना
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्‍त करने के लिये एक बार अवश्‍य पधारें
    टिप्‍पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
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  4. जब सबकुछ उनका है ... तो भाव भी उनका ही है ... दोनों एक हों तो फरक क्यों ...

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  5. बहुत ही सुन्दर लेखन

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