ढूंढते थक जाओगे
वहां भी, जहाँ तीन नदियाँ मिलती है
उन किनारों पर
जहाँ राख, कठकोयले और
अधजली लकड़ियाँ बिखरी होगीं
नही मिलुंगी मैं
दिखूंगी तुम्हे
तुम्हारी आँखों में
जिन्हें सबसे छुपाते फिरोगे
दिखूंगी उस आलमारी में
जहाँ से हर सुबह प्रेस किये कपडे निकालते हो
दिखूंगी वहां..
तुम्हारे बिन पालिश के जूतों में
और वहां भी... रसोई में
जहाँ कुछ खाने को नहीं बना होगा
घर के
इधर-उधर फैले सामान में भी
अक्सर... मैं ही दिखूंगी तुम्हें..!!
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