Saturday, July 6, 2013

प्रीत के संस्कार

इस बार मायके से
माँ के उस
पुराने सन्दूक में पड़े
मूंझ के उस मोनिया ने
मुझे बहुत याद किया था

जिसने सम्भाल रखा था
मेरा बचपन
और उसकी विरासत
बैंक-लाकर की तरह

तरह तरह के
चिकने पत्थर
लाल हरी कुछ साबुत
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ

चिड़ियों की सुरंगी पाँखे
सीप के बटन
राखी के फुंदे
परांदे वाली चोटी
कैसे छुपा रखती थी इन्हें
सबकी नजरों से दूर

आह !
प्रीत के संस्कार
इन्हीं के दिए थे शायद

क्या करूं इनका ?
बचपन तो रहा नहीं
दस पैसे पांच पैसे वाले
पुराने सिक्के जरूर उठा लायी हूँ
पचपन तक
थोडा सा बचपन सहेज रखूं फिर भी ... !!

1 comment:

  1. बहुत जरूरी होता है बचपन की सहेजना ... यादों में ये ही सच्चे साथी होते हैं ...

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