अँकवार लिए
उस पेड़ को
वह लतर
शायद
गुनगुना रही है
कोई प्रणय गीत
नृत्य-मुद्रा में जैसे
उसके पाँव थिरकते
थपथपाते धरती
शाख दर शाख
फैलती चली जाती हैं
उसकी बाहें
नाप लेना चाहती हैं आसमान... !!
उस पेड़ को
वह लतर
शायद
गुनगुना रही है
कोई प्रणय गीत
नृत्य-मुद्रा में जैसे
उसके पाँव थिरकते
थपथपाते धरती
शाख दर शाख
फैलती चली जाती हैं
उसकी बाहें
नाप लेना चाहती हैं आसमान... !!
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