Thursday, August 29, 2013

हाँ ! वही तो है...



जिसके संग निडर
गुजर जाती है मेरी रात
सबकी नज़रों से दूर...

मैं धरा,
हर पल नयी
नए स्वप्नों को जन्म देती
मुहब्बत के नशे में... ‘धुत्त’
चलो,
फिर से उसकी बात करें

वह मेरी किताब है
उसका एक-एक पन्ना
मेरी जुबान पर

उसे पढने की
मेरी प्यास का
कोई अंत नहीं

फिर से कहो न
क्या… कहा...चाँद... क्या ?

Tuesday, August 27, 2013

सच कहूँ ...


सच कहूँ
तो मुझे कभी समझ में नही आया
कि जीवन में वह कौन सा क्षण था
जब पहली बार मिले थे तुम ...

लगे थे मित्र से भी कुछ अधिक वल्लभ ,
भाई से भी कुछ अधिक अपने ,
सखा से भी कुछ अधिक स्नेही,
पिता से भी कुछ अधिक पवित्र !

यों तो सबके दुलारे हो
पर मुझे कुछ अधिक प्यारे हो

जो नहीं आता मुझे
सब सिखलाते हो
रास्ता दिखाते हो मेरी
नादानियों पर मुस्कुराते हो
आशीष बरसाते हो

हे मेरे शक्तिमान
जब चाहूँ जैसे चाहूँ..
पुकार लूं दप दप दमकते
स्नेह लुटाते
चले आते हो अविलम्ब

हे मेरे सोलह कला सम्पूर्ण...
क्या कहूँ ..
किस रिश्ते से समझूं तुम्हें
इंसान या भगवान .. !

महान कह कर तुम्हें छोटा न करूंगी
इंसान कह कर बराबरी में नहीं रख सकती

भगवान !
नहीं नहीं ! तुम तो मेरे इतने इतने इतने अपने हो... !!

(जन्माष्टमी की अनेकानेक शुभकामनाये मित्रों )

Monday, August 26, 2013

कोई क्यूँ करे बदनाम ?


हमने माना है
तुझे भगवान्
आये धरती पर बन इंसान
पुजारिन रुक्मिणी को
जीत लिया
प्रतिरूप राधा के संग वंशी बजाते बन -बन नाचे
काहें करे संदेह ऐ मानुष
प्रेम की महानता
गवाह देने स्वयं
उतरे थे धरा पर भगवान् ... !!


( चित्र  गूगल से )

Tuesday, August 20, 2013

स्वप्न में जी रही


तेरी ही शब्द रचना हूँ
कितने प्यार से
रचा है तुमने मुझे

सब याद है
जो कुछ भी
तुमने मेरे साथ किया

वही सब
जो वसंत करता है
फूलों के साथ

प्रसन्न पुष्प सी
खिल गयी हूँ मैं

मेरी देह में तेरी गंध
समा चुकी है..

एक सम्मोहन
दो काया को एक कर के
स्तब्ध सा खड़ा
सम्मोहित
अपने ही कृत्य पर

मेरी धडकनों में
तेरा प्रेम साफ़-साफ़
सुनाई दे रहा है
मनमीत के
अधर अनुराग का संगीत
अभी तक थिरक रहा है

तेरा वह चुम्बन
मुझे याद है प्रिय
जिसके ताप ने
मुझे शीतल किया

निशा साक्षी वह समागम
किस विलक्षण प्रणयसूत्र में
हमें बाँध गया...

मुझे याद है...!

तुम्हारी ख़ामोशी


तोड़ती है मुझे

देखो तो
बरौनियोँ पर
ओस की बूंदें
 झूल आई हैँ

थोड़ा झुको न
अपने गुलाब से
पंखुड़ियोँ को रख देखो

नही रख सकोगे न ?

हाँ...
मत रखो
खारेपन
तुम्हारे स्न'युओँ मेँ
भीन जायेगा

और ओठो की
गुलाबीपन
नष्ट न हो जाये

यूँ ही झूलने दो
इसकी तो फितरत है
भींगने और सूख जाने की ... !!

Wednesday, August 14, 2013

लट्टू की लपेट




तेरा यह प्यार
मैं नाच रही हूँ
गोल-गोल
अपनी ही धुरी पर
जैसे नाच रहा ब्रह्मांड... !!

(जुलाई २०१३ कथादेश पत्रिका में छपी मेरी रचना )



तेरा आना





मुखर कर जाता है मुझे  
मेरी निसंगता को
धीमे से छेड़ जाता है  

सच कहूँ
एक पल को आते हो
कई जन्म की प्यास दे जाते हो...!

प्रणामबद्ध अंजुलियो में




सहेजे हुए स्वप्न मेरे...
खिलो ना
जैसे खिलती है प्रार्थना

तन के...
मन के...
कण-कण में
अमित दुलार से रचे
स्वप्न मेरे..

खिलो न..
जैसे खिलता है,
इग्जोरा का फूल...!!

जी करता है



एक झिगोला हो
पकडूं चाँद और सूरज को
भर दूँ झिगोले में....
घुमाती रहूँ उन्हें देर तक ...!!

एक मीठी आस तेरी


एक सोंधी प्यास तेरी

तेरा सानिध्य
जैसे बसंत में
बौराता आम...
कसमसाता टेसू...
गुलमोहर...!!

दिल के पराग पर



जलप्रपात से
गिरते हैं उसके अक्स

कैसा मुहफट

“क्या हुआ...?
प्यार हो गया..?

गलती हो गई...?
कुछ बुरा हुआ क्या...?”

इस चाँद का क्या करूं...?

Saturday, August 10, 2013

तीन क्षणिकाएं

  १. 
मत उछालो 
खोटी नहीं हूँ 
चित्त भी तुम्हारी है 
पट्ट भी तुम्हारी है ...!

२. 
रिश्ते पल में मीठे 
पल में खट्टे 
तुला के बट्टे...!
 

३. 

सुनो 
पंख भी हैं 
परवाज भी है 
और बंदिशों के जाल भी 
चुनाव तुम्हारा है... चुनो..!

Friday, August 9, 2013

इस नील स्यामल

 
अनन्तता में

धकेल कर मुझ निर्वसना को
कोई चुरा ले गया है मेरे शब्द...
मेरी ध्वनियाँ... मेरे चित्र...

जा बैठा है ना जाने 
किस कदम्ब की शाख पर

कैसे पुकारूँ सखी... मैं तो गई...!!

Wednesday, August 7, 2013

चाँद की बात न कर

न मौसम बदलता है,
न एहसान चढाता है
न जलता-जलाता,
बस खुद को लुटाता है

समझता है .मेरी व्यथा
जी जान से
मेरी थकान मिटाता है
दुबला जाता कैसे
मेरे गम में

और पाकर मुझे
कुप्पे सा फूल जाता है

चाँद की बात न कर
वह तो हर रात नया रूप
यौवन भरपूर..
मुझे रिझाने में जुटा

उसका यह सिलसिला तो
सदियों से है...

उसके जैसी चाह
उसके जैसी शोखी
और भला किस में है ?

प्रेमियों का प्रेम है
मेरे इस चाँद की बात न कर... !!

Sunday, August 4, 2013

मैं रेत हूँ

अभी तो मेरी
रात भी नहीं टूटी
अभी तो
'लो' भी नहीं फूटी...

छटपटाने लगे हैं ..?
पालने के
झुनझुने से तुम
जिन्दगी में अभी देखा ही क्या है.. ?

हवा,
मुझे भी सहलाती है
लहरें,
मुझमें भी उठती,
बनती...बिगडती,
सफर करती हैं...

तेरे जैसे
कितने ही ऊंट-गर्दभ
दबे हैं
मेरे ढूहों में रेत हुए...

अरुणोदय के मेरे रंग
अस्ताचल की मेरी छटा

चलोगे क्या .. मेरी कविता की धूप में...?

मैं रेत हूँ
तो क्या मतलब...!
मेरा कोई वजूद नहीं...?

Friday, August 2, 2013

मेरी रगों में बहते हो...

जाओ...
चले जाओ
पर जाओगे कहाँ ?

तेरी अनुपस्थिति भी
मेरे लिए एक उपस्थित है

ना निकले सूरज
तेरा उजाला
दिल से जानेवाला नहीं

अब तो
बिना चाँद के भी
मेरी रातें चांदनी हो जाती हैं

अंतस में
नदिया की तरह
जीवन की तरह
शब्द-शब्द तुम
मेरी रगों में बहते हो...
जाओ
पर मुझे छोड़ कर, जाओगे कहाँ... ?