Wednesday, September 14, 2011

बोनसई


 

तुम जानते हो बहुत बड़ी हूँ

पर तुम्हारे
संकुचित विचारों के कारण
हूँ यहाँ...गमले में सजी


छोड़ के देखो मुझे
खुली जमीन में
नजरें उठानी पडें
टोपी सम्भालते हुए
और वही तुम नहीं चाहते

तुम्हारी आशंकाएं
निराधार भी नहीं हैं

क्या बनेगा
तुम्हारी शान
और अहंकार का
जो गमले से निकल
पा लीं मैंने जमीन
और छू लिया आसमान...!!



बोनसाई पौधे को अदबदा कर छोटा बनाने की अस्वाभाविक प्रक्रिया का उत्पाद है .पौधे के कुदरती विकास के साथ खिलवाड़ है .हमारे बनाए समाज में लडकियां औरतें भी बोनसाई बना रखी जातीं हैं ...!!

3 comments:

  1. माफ़ किजिये मुझे बोनसई का मतलब नहीं पता.....हो सके तो बता दें बाकी पोस्ट अच्छी लगी|

    कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आईये...........और हो सके तो अपने ब्लॉग से टिप्पणी का वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें|

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  2. बोनसई का मतलब होता है किसी बड़े पेड़ को उसके हिसाब से जगह न देकर कैद कर देना...जैसे बरगद,पीपल ,आम और भी बहुत पेड़ हैं जिन्हें खुले जमीं ना देकर आज कल लोग उसे गमले में लगाने का शौक रखते हैं...

    आपके ब्लॉग पर जरुर आना है...आज कल थोड़ी हूँ ...अपनी कवितावों को संगृहीत करने में....दो चार दिन का समय मुझे आप सब मित्रों से चाहिए फिर मै किसी को सिकायत का मौका नहीं दूंगी , बहुत कुछ सीखना है आप सबसे...आभार

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  3. आदरणीय वसुंधरा पाण्डेय जी
    नमस्कार !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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