Thursday, September 8, 2011

'तुम' बन जाऊं..


बेचैन 'रूह' सी 
मडराती हुयी मै...
भटकती-भटकती
तुझमे समा
'तुम' बन जाऊं.. !!

8 comments:

  1. wow, beautiful lineswow, beautiful lines

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  2. Thanks Nishi ji...लिखूं 'कविता' नयी- नयी मैं;
    बड़ी मुझे अभिलाषा है;
    लेखन की 'पूजा' मैं करूँ;
    बस कर्म मुझे ये भाता है.....>>>....Jai Shri krishna....<<<<<

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  3. गोविन्द जी बहुत आभारी हूँ की आपने अपने बहुमूल्य समय में से निकाल कर यहाँ पर अपने शब्दों के मोती सजाये...बहुत बहुत धन्यवाद ..जय श्री कृष्णा ...!!

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  4. शांतिदीप जी बहुत -बहुत आभार आपको ...!!

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