
बीत गया बसंत
तेरे आगमन की ...
यादे शेष है
पतझर के मौसम में
ये कैसा श्रृंगार हुआ था ?
बसंत का आगमन तो दूर
मेरे मन में
तेरा आगमन
बार -बार हुआ था
नैस्त्रशियम और पैंजी के
फूलों से ज्यादे
सुन्दर, खुबसूरत
आम के बौरों से भी
ज्यादा महकदार -
ऐ मेरे यार,हवा जैसे
दोशीजा की ...
कलियों के आंचल
और लहरों के मिजाज
से छेड़खानी करती ,
मेरे मन में तेरी आहट
एक नयी अनुभूति-
देती हुयी...
तुम सुबह से भी
ज्यादा ..मासूम
प्रभाती गाकर,
फूलों को
जगा देने वाले
देवदूत मेरे
सूर्योदय के गुलाबी
पंखुडियां बिखेरने
वाले....
सुनहरे पराग की
एक बौछार
सुबह के ताजे
फूलों सी बिछ रही
मेरे तन ,मन में -
अब भी शेष ...Vasu
वाह.........बहुत ही सुन्दर............तस्वीर का चयन भी लाजवाब|
ReplyDeleteShukriya Imraan jee
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
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