Sunday, September 11, 2011

तुम 'ही' मै हूँ


मेरी चांदनी ...
तुम..हो ही ऐसी ..
तुझे याद क्यूँ न करूँ...
मेरी गुलाब तो
तुम ही हो
बागों का गुलाब
क्यूँ याद रखूं,
वो सावन की
पहली बारिश ..
जब हम साथ थे...
भींगे..
वो लम्हा
भूलता ही नहीं
फिर याद क्या रखूं,
वो भींगे हुए
गेसुओं को देख
जब मै भ्रम में था
कि
घटा है या गेसू.....
और लिपट गया था
तुझमे..
वो भुला कब कि...
कुछ याद करूँ,
हर पल नुरानी बन
समायी हो...
मेरे जेहनो जद्द में
सुबह कि रंगत को
याद क्यूँ करूँ...
सच तो ये है प्रिये...
तुझे भूल पाता नहीं...
फिर क्या याद करूँ ...
क्या याद करू......Vasu

5 comments:

  1. हकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!

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  2. सच तो ये है प्रिये...
    तुझे भूल पाता नहीं...
    फिर क्या याद करूँ ...
    क्या याद करू.

    प्यार के प्रति सुंदर उदगार पेश किये हैं कविता के माध्यम से. बधाई.

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  3. vandana ji word verification hata deejiye coments ki settings se.

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  4. मेरी चांदनी ...
    तुम..हो ही ऐसी ..
    तुझे याद क्यूँ न करूँ...
    मेरी गुलाब तो
    तुम ही हो
    बागों का गुलाब
    क्यूँ याद रखूं,
    वो सावन की
    पहली बारिश ..
    जब हम साथ थे...
    pyar bhari sukhad anubhuti ki prateeti karati
    kavita ke lie aapka abhar.

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  5. अनिल जी /रचना जी/ सुशीला जी आप सभी मित्रों को हार्दिक आभार ,और चुकी मै ब्लॉग पर नई हूँ तो चाहूंगी की मेरी त्रुटियों को आप सब जरुर बताएं...अनुगृहित होउंगी...
    रचना जी ...आपके कहे अनुसार मैंने बहुत कोशिस की पर समझ नहीं आया की कहाँ से सेटिंग्स करूँ ??

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