Wednesday, September 14, 2011

जीवन का पहिया..


जीवन का पहिया
घिसा-घिसा सा ह
और..
रीता -रीता सा

चलो न ----
रीते-रीते में रंग भरते हैं
घिसे-घिसे में उमंग

रंगों को तुम भरना
क्यूंकि..
'तुम' हो 'सप्तरंग'

हाँ--
उमंग मै भरुंगी...
क्यूंकि..उमंगें 'कुलांचें'
भर रही हिरनी सी
--मेरे वजूद में...Vasu

6 comments:

  1. सुभानाल्लाह.........बहुत खूबसूरत आपकी शब्दों की बयानगी बहुत खूबसूरत है |

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  2. ख़ूबसूरत चित्रों से सुसज्जित ख़ूबसूरत ब्लॉग पर पहुंच कर आनन्द अनुभव हो रहा है वसुंधरा जी !

    …और , रचना भी हृदयग्राही है -
    हां…
    उमंग मै भरुंगी…
    क्यूंकि उमंगें 'कुलांचें'
    भर रही हिरनी सी…
    मेरे वजूद में

    बहुत सुंदर भाव हैं … आभार ! बधाई !


    आपको सपरिवार
    नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. रंगों को तुम भरना
    क्यूंकि..
    'तुम' हो 'सप्तरंग' ......बहुत सुन्दर ,बधाई .......

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