
कितनी जहरीली
कितनी तड़प ,
कितनी पीड़ा
सांसो की अकुलाहट ..
बढती जाती है
उसमें फँसी इस 'मै'
का क्या करूँ ?
शरीर आत्मा को ..
छोड़ती तो शव बन जाती ,
उसकी तो ' गती ' है
कुछ लकड़ियाँ ...
उस पर शव बना शरीर
अग्नि को अर्पण करते लोग
यादों को कहाँ अर्पण करूँ...
तर्पण करूँ ?
कैसे इसका श्राद्ध करूँ ...
कैसे इसका श्राद्ध करूँ
कैसे इसका श्राद्ध करूँ ... Vasu
wah......................badhai
ReplyDeleteताज्जुब है इतना अच्छा ब्लॉग मेरी नज़रों में नहीं आया अब तक...........सबसे पहले तो मेरे ब्लॉग खलील जिब्रान पर आपकी टिप्पणीयों का तहेदिल से शुक्रिया.........आपके ब्लॉग पर आया.........आपका ब्लॉग और कुछ पोस्ट पढ़ी बहुत अच्छी लगी...........तस्वीरों का चयन भी लाजवाब है आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे........
ReplyDeleteअगर फुर्सत मिले तो मेरे अन्य ब्लॉग भी देखे और अगर पसंद आये तो फॉलो करके उत्साह बढ़ाये |
यादों को कहाँ अर्पण करूँ...
ReplyDeleteतर्पण करूँ ?
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ..........
aap sabhi ko koti koti abhar
ReplyDeletenice
ReplyDeleteग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeleteसंजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
ReplyDeleteKitni Zahrili....amazing poetry. Is hindi ki kapvita ke madhyam se apne ham sabko bandh liya hai.
ReplyDeletekapoorrustogi@gmail.com